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गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

कोई पास हमारे रहती है, मैं पास किसी के रहता हूँ|

इस रात को अक्सर मुझसे कई शिकायत रहती है|

मैं इससे बचना चाहता हूँ
फिर भी ये मुझे सताती रहती है|

ये मुझे चिढाती रहती है,
मैं अक्सर हीं चुप रहता हू|

इसे सताना अच्छा लगता है,
चुप रहूँ तो तो इसको लगे बुरा|

मैं हंसू तो इसको और बुरा,
ये हंसती है मेरे ऊपर ये मुझे अकेला कहती है|

मैं तो बस सहता रहता हू,
बस यही सुनाती रहती है|

पर अब कुछ दिनों से अब सच में हालत विपरीत हुआ है,
मैने रात को बतलाया की मुझे भी किसी से प्रीत हुआ है|

फिर भी इसे विश्वास नही है,
ये मुझे ही झूठा कहती है|

पर ये सच है|

इसे मेरी मुस्कुराहट झूठी लगती है,
मैं फिर भी सहता रहता हूँ|

लो सच ये है मैं बतलाता हूँ

कोई पास हमारे रहती है,
मैं पास किसी के रहता हूँ|


10 टिप्‍पणियां:

  1. प्रभु सबके दिलों में रहती है /
    प्रभु भी कभी हमसे ...रूठ जाता है /
    फिर हम उसे मना लेते है

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  2. bahoot badhiya.......jo jisse jitna door bhagta hai wo uska utna hi picha karta hai.

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  3. धन्यवाद शम्भू जी|
    आप ने सच ही कहा .....

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  4. लगता है हारकर आपने उस शिकायत करने वाली " निशा " को ही अपना सहचरी बनाने का फैसला कर लिया है ! बहुत सुन्दर चन्दन जी, बहुत ही प्यारी कविता!

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  5. कोई पास हमारे रहती है,मैं पास किसी के रहता हूँ|बहुत खुब चन्दन जी !

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  6. अरे भाई आप कही रहे या ना रहे हम सभी के दिल में तो अवश्य रहते है। सुन्दर रचना। आभार।

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  7. good start..............hope.....lambi race ke ghode ho...........my wishes and blessings are with you

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  8. जोगी जी आप ने मेरा उत्साह वर्धन किया है और शुभकामनायें दी है आपको बहुत बहुत धन्यवाद!

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