ये सच है कि,
राष्ट्र कल्याण में जो लगे हैं, हम उन्हें बदनाम करते हैं|
अपेक्षा करने वाले हि उपेक्षा के भाव सहते हैं|
अपेक्षा करने वाले हि उपेक्षा के भाव सहते हैं|
अब सेना के ऊपर पत्थर पड़ते हैं|
और दहशतगर्दों पे फुल बरसते हैं|
पत्थरबाजों को सरकारी इनाम मिलते हैं|
दिवंगत सैनिकों के परिजन को गर्व करने के समान मिलते हैं|
पत्थरबाजों को सरकारी इनाम मिलते हैं|
दिवंगत सैनिकों के परिजन को गर्व करने के समान मिलते हैं|
आतंकवादी मानवता पर हमले करते हैं|
मानवाधिकार संगठन आतंकियों कि रक्षा करते हैं|
ओसामा जैसे आतंकी भारत में ओसामा जी कहलाते हैं|
नेता मन्त्री भगोड़े कि मौत को राष्ट्र कि अपूरणीय क्षति बतलाते हैं|
चोर और धनवान भारत का धन विदेशों में जमा करते हैं|
ऋण के बिना हमारे युवा और उधमी बेकारी में पलते हैं|
मरने से पहले ही नेताओं के स्मारक बनते हैं|
अब इंसान, इंसानों के चालीसे पढते हैं|
अब भी शैतान नही भागा हलांकि हर साल उस पर पत्थर पड़ते हैं|
हम खुदा को खून पीने वाला पिचास समझते हैं|
पूजा में लगे लडके मुन्नी कि माला जपते हैं|
उसूलों पे चलने वाले ही उलझन में रहते हैं|
लाख गुण हो पर बबूल के पौध कहाँ लगते हैं|
गुणवान खुद उगते और आगे बढते हैं|
खेलने कि उम्र में बच्चे खिलौने बेचते हैं|
जो जल्दी पनपते हैं, वो जल्दी झुलसते हैं|
जो हमारे पैर पड़ते हैं वो ही हमारी गर्दन जकड़ते हैं|
लोकतंत्र में भी हम कुछ को युवराज समझते हैं|
अपराधी राजनीती और राजनीतिज्ञ अपराध करते हैं|
जिन्हें हम संसद में भेजते हैं वो तिहाड़ में मिलते हैं|
मन्थाराओं के मन्त्रनाओं से मंत्री जी चलते हैं|
कुशल राजनीतिज्ञ कुटिलता से शासन करते हैं|
बिजली के दौर में भी लालटेनों के कारखाने खुलते हैं|
अस्पतालों के फाटक पर ताबूत मिलते हैं|
जनता के नौकर जनता पे राज करते हैं|
चोर लुटेरे मुखिया और सरपंच बनते हैं|
चोर, लुटेरे भी अपना कुछ राजनितिक वर्चस्व रखते हैं|
चोर लुटेरे मुखिया और सरपंच बनते हैं|
चोर, लुटेरे भी अपना कुछ राजनितिक वर्चस्व रखते हैं|
और इस नाते गुंडे भी रात को गुड नाईट कहते हैं|
कुछ रक्तचाप से तो कुछ रक्ताभाव में दम तोड़ते हैं|
कुछ मोटापे से तो कुछ भूखों मरते हैं|
अन्नदाता ही भूख से आत्महत्या करते हैं|
अनुदान पर खाने वाले मंहगाई पे चिंतन करते हैं|
गधे सबसे ज्यादा मेहनत करते हैं|
मेहनत करने वाले कि खबर भगवान रखते हैं|
बाढ़ से त्रस्त इलाकों में सूखे पड़ते हैं|
बिजली से सडकें रौशन और घरों में अँधेरे रहते हैं|
महानगरों में भी किल्लते और जिल्लते सहने पड़ते हैं|
पानी के कमी के बावजूद यहाँ हर रोज लोग बढते हैं|
गंगा के बच्चे बाल्टी पकड़ते हैं, समुद्र में सावन बरसते हैं|
कुछ बच्चे किताब और कुछ कचड़े का थैला पकड़ते हैं|
कुछ बच्चे किताब और कुछ कचड़े का थैला पकड़ते हैं|
दूध पीने वालों को लोग बच्चा समझते हैं|
लाख गुण हो, दूध से ज्यादा शराब बिकते हैं|
शराब के कर से हम विकास करते हैं|
वर्जित शराब को विकसित फैशन समझते हैं|
गोरा करने के क्रीम बनाने वाले विश्व सुन्दरी बनाते हैं|
गेंद से ज्यादा स्त्रियाँ उछले, तब उसे भद्रजनों का खेल कहते हैं|
हम आरक्षण से सामाजिक नही आर्थिक विषमता दूर करते हैं|
बैठकों में सहमत रहने वाले मन में शत्रु सा वैर रखते हैं|
नेता दुरी बढाकर समाजिक असमानता दूर करते हैं|
जो भगवा पहनते हैं उन्हें हम आतंकी समझते हैं|
बिगबोस में भगवाधारी अग्निवेश रहते हैं|
उसूल वाले से कई परेशान रहते हैं|
भ्रष्टाचारी, भ्रष्टाचार पर चिंता जताते हैं|
और वे इसे देश की ज्वलंत समस्या बताते हैं|
वृद्धा पेंशन के पैसे युवा अधिकारी हड़पते हैं|
बड़े हाकिम घुस को बाजिव समझते हैं|
हम भारतवासी भ्रस्टाचार सहते हैं|
विरोध में बाबा और अन्ना भूखों रहते हैं|
अखबार समाचारों के नही इश्तिहारों के सहारे चलते हैं|
सच का कफन ओढ़ युवा खबर से ज्यादा प्रचार ढूंढते हैं|
अखबारें, खबरों को गमगीन और प्रचारों को रंगीन रखते हैं|
अखबारें, खबरों को गमगीन और प्रचारों को रंगीन रखते हैं|
कलाकार कहानी के लिए अश्लील प्रदर्शन करते हैं|
और ऐसे बिकाऊ को हम अपना नायक समझते हैं|
ये भड़काऊ ब्यान को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समझते हैं|
माँ-पिता के आपने महत्व हैं, ये अब लोग कहाँ समझते हैं|
कई पिता, पुत्र के रहमोकरम पर पलते हैं|
माँ बेटे के रिश्ते को बेटे अब बोझ कहते हैं|
सम्बन्धों के महत्व आभूषण बताते हैं|
बैंक ऋण लेकर हम घर बनाते हैं|
चिंताओं को कल पर टालते जाते हैं|
आप सभी को हम अब जय हिंद! कहते हैं|
आपकी यह रचना सच्चाई से रुबुरु करवाती हैं और अनेकों प्रश्नों के उत्तर मांगती हैं ....
जवाब देंहटाएंहम ऐसे ही हैं जी.....
जवाब देंहटाएंआपने आपने आक्रोश को अभिव्यक्ति दी है।
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा आज दिनांक 11-11-2011 को शुक्रवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत एवं भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
विरोधाभाषों से भरा है जीवन.
जवाब देंहटाएं...........यह हैं सच्चाई
जवाब देंहटाएंसंजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
मरने से पहले ही नेताओं के स्मारक बनते हैं|
जवाब देंहटाएंअब इंसान, इंसानों के चालीसे पढते हैं|
कैसी कैसी विसंगतियों के बीच जी रहे हैं हम!
बहुत ख़ूबसूरत एवं भावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी लगभग सभी बातें सच है खूबसूरत एवं भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंसमय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
सीधी खरी सच्ची...
जवाब देंहटाएंसादर...
चन्दन जी,बहुत अच्छी भावपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग के आप फालोअर बने,इसके लिए आभार आपका.
मैं भी आपका फालोअर बन गया हूँ.
देश की वर्तमान परिस्थिति का बेबाक चित्रण।
जवाब देंहटाएंmahendra verma जी,Rakesh Kumar जी, S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib')जी, Pallaviजी, Maheshwari kaneri जी, अनुपमा पाठक जी,संजय भास्कर जी, मन के - मनकेजी Babli जी. चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’जी, मनोज कुमार जी, दीपक बाबा जी, Sunil Kumarजी आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद!आगे भी इसी तरह से मार्गदर्शन की अपेक्षा है|
जवाब देंहटाएंvery nice
जवाब देंहटाएंआपने बहुत अच्छा लिखा है! बधाई! आपको शुभकामनाएं !
आपका हमारे ब्लॉग http://tv100news4u.blogspot.com/ पर हार्दिक स्वागत है!
So true !
जवाब देंहटाएंWonderfully written !
शनिवार के चर्चा मंच पर
जवाब देंहटाएंआपकी रचना का संकेत है |
आइये जरा ढूंढ़ निकालिए तो
यह संकेत ||
कृपया आप अपनी इस पोस्ट का font का रंग बदल दें पढ़ने मे बहुत असुविधा हो रही है...
जवाब देंहटाएंआपका आभार!
हटाएंफॉण्ट बदल दिया है|
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंघूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
डॉ साहब आभार!
हटाएंजो हमारे पैर पड़ते हैं वो ही हमारी गर्दन जकड़ते हैं|
जवाब देंहटाएंलोकतंत्र में भी हम कुछ को युवराज समझते हैं|
अपराधी राजनीती और राजनीतिज्ञ अपराध करते हैं|
जिन्हें हम संसद में भेजते हैं वो तिहाड़ में मिलते हैं|
मन्थाराओं के मन्त्रनाओं से मंत्री जी चलते हैं|
कुशल राजनीतिज्ञ कुटिलता से शासन करते हैं|
दो टूक कह गए आप हालात आज के ...
वीरूभाई जी आपका आभार!
हटाएंरविकर जी आभार |
जवाब देंहटाएं