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शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

संभलने का रियाज अगर होता सियासत में

संभलने का रियाज अगर होता सियासत में,
तो तुम तुम नही होते और हम हम नही होते|

न मजाक हम बनते, न मजा तुम उड़ा पाते|
तुम्हारा दर्द मुझे होता, मेरा हमदर्द तुम होते|

न तुम हंसते लाचारी पर, ना मैं रोता तेरे आगे, 
हंसते तो साथ हंसते और रोते तो साथ रोते|

ना बच्चे ठगे जाते, ना भिखारी होता कोई,
मिलता तो सब खाते, नही तो तुम भी भूखे होते|

कोई झूठा नही कहता, कोई घृणा नही करता,
जो तुम भी सही होते, जो हम भी सही होते|

भूखे, नंगे, कचरा बीनते बच्चे नही दिखते,
सच्चाईयों  से बचने को चेहरे पर चश्में नही होते|

ना  तुम कुछ ले जाओगे ऊपर ना हम कुछ गाड़ेंगे जमीं में....
गर समझ पाते तुम इतना तो यूँ ही अब तक दौलत नही ढोते|

13 टिप्‍पणियां:

  1. यही तो है, आज संवेना गायब-सी है, इसीलिए एक के दर्द पर दूसरा मज़ाक़ उड़ाता है।

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  2. फसबूक पर शेयर नहीं कर पा रहे है

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    1. महोदय इस पुरे सामग्री को कापी कर या ब्लॉग अड्रेस www.chandankrpgcil.blogspot.in को भी कोपी कर भी पेस्ट कर सकते हैं इन दिनों फेसबुक ने कुछ सेफ्टी फिल्टर बढा दिया है जिस कारण ये समस्या है | सादर

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  3. चर्चा मंच पर इसे प्रस्तुत करने के लिए आभार!

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  4. न मजाक हम बनते, न मजा तुम उड़ा पाते|
    तुम्हारा दर्द मुझे होता, मेरा हमदर्द तुम होते|/
    waah chandan bhai ....
    vyvastha ke khilaaf aap achha likh rahe hai /
    jai ho

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  5. न मजाक हम बनते, न मजा तुम उड़ा पाते|
    तुम्हारा दर्द मुझे होता, मेरा हमदर्द तुम होत|एक के दर्द पर दूसरा मज़ाक़ उड़ाता है।बहुत अर्थपूर्ण रचना!

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  6. बहुत सुन्दर रचना...
    हार्दिक बधाई..

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