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गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

कोई पास हमारे रहती है, मैं पास किसी के रहता हूँ|

इस रात को अक्सर मुझसे कई शिकायत रहती है|

मैं इससे बचना चाहता हूँ
फिर भी ये मुझे सताती रहती है|

ये मुझे चिढाती रहती है,
मैं अक्सर हीं चुप रहता हू|

इसे सताना अच्छा लगता है,
चुप रहूँ तो तो इसको लगे बुरा|

मैं हंसू तो इसको और बुरा,
ये हंसती है मेरे ऊपर ये मुझे अकेला कहती है|

मैं तो बस सहता रहता हू,
बस यही सुनाती रहती है|

पर अब कुछ दिनों से अब सच में हालत विपरीत हुआ है,
मैने रात को बतलाया की मुझे भी किसी से प्रीत हुआ है|

फिर भी इसे विश्वास नही है,
ये मुझे ही झूठा कहती है|

पर ये सच है|

इसे मेरी मुस्कुराहट झूठी लगती है,
मैं फिर भी सहता रहता हूँ|

लो सच ये है मैं बतलाता हूँ

कोई पास हमारे रहती है,
मैं पास किसी के रहता हूँ|