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मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

शत शत नमन!

जो रहे अविचल,
संघर्ष किये,
जो अटल रहे इरादों पर,
माँ से किये अपने वादों पर,
लुटा दिए अपने तन मन,
करो उन्हें नमन|

विपदा की घडी को भाप गये,
उन्हें पता था जान की जोखिम
फिर भी जिनके नम न हुए नयन,
सदा ही बढ़ते रहे कदम,
करो उन्हें नमन|

जिनके बच्चे अब भी भूखे हैं,
माँ- वधु, बहने जिनकी हों अबला,
जिनके शौर्य के बल पर
टिका है अपना जन गन मन,
करो उन्हें नमन|

जिन पर गर्व हमें है अब भी,
शर्म है तो इस राजनीति से,
जिनके लहू ने सींचा भारत भू को,
जिन्होंने तन मन धन,
सब किया राष्ट्र को अर्पण,
करो उन्हें नमन|


गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

कोई पास हमारे रहती है, मैं पास किसी के रहता हूँ|

इस रात को अक्सर मुझसे कई शिकायत रहती है|

मैं इससे बचना चाहता हूँ
फिर भी ये मुझे सताती रहती है|

ये मुझे चिढाती रहती है,
मैं अक्सर हीं चुप रहता हू|

इसे सताना अच्छा लगता है,
चुप रहूँ तो तो इसको लगे बुरा|

मैं हंसू तो इसको और बुरा,
ये हंसती है मेरे ऊपर ये मुझे अकेला कहती है|

मैं तो बस सहता रहता हू,
बस यही सुनाती रहती है|

पर अब कुछ दिनों से अब सच में हालत विपरीत हुआ है,
मैने रात को बतलाया की मुझे भी किसी से प्रीत हुआ है|

फिर भी इसे विश्वास नही है,
ये मुझे ही झूठा कहती है|

पर ये सच है|

इसे मेरी मुस्कुराहट झूठी लगती है,
मैं फिर भी सहता रहता हूँ|

लो सच ये है मैं बतलाता हूँ

कोई पास हमारे रहती है,
मैं पास किसी के रहता हूँ|


बुधवार, 1 दिसंबर 2010

जा आगे को बढता जा|

जा आगे को बढ़ता जा, जा आगे को बढ़ता जा|

आगे को बढ़ता जा प्यारे तू पीछे मूड़ना कभी नही|
पीछे मुड़ना कायरता है, रुकना झुकना कभी नहीं|

भाग्य सहारे कायर जीते, कर्म सहारे बढते वीर|
नतमश्तक हो कायर बढ़ते, सर उँचा कर चलते वीर|

चलो निरंतर अपने पथ पर जा मंजिल को बढ़ता जा|
छूटे हुए पदचिन्ह देखकर जा आगे को बढ़ता जा|
जा आगे को बढाता जा|

गर्व करो अपने ऊपर की बना मिला है रास्ता|
नमन करो उन लोगो को जिन्होंने बनाया रास्ता|

मत हो उदास मत हो निराश विचलित मत हो संघर्ष करो|
बनो सबल तुम बनो सफल अविचल होकर उत्कर्ष करो|

स्वविवेक पर रहो अटल तुम, जा पर्वत पर चढता जा|
मंज़िल अब कोई दूर नहीं है जा आगे को बढ़ता जा|
जा आगे को बढ़ता जा|

चन्दन (पहले की स्वरचित कविता -- जा आगे को बढ़ता जा के संपादन के बाद )



गुरुवार, 18 नवंबर 2010

शहर के लोग

पता नहीं इन शहरों में लोग कितने होते हैं|
पता नहीं इन शहरों में लोग कब खाते कब सोते हैं|

पता नहीं इन शहरों में कितने बुन पाते हैं, अपना आशियाना|
और कितने अपना घर खोते हैं|

पता नही कितने प्रतिशत रहते हैं इंसान यहाँ पे|
और कितने जालिम होते हैं|

पता नही कितने करते भागम भाग यहाँ पे |
और कितने चैन से सोते हैं|

पता नही कितने हंसते हैं झूठी हंसी यहाँ |
और कितने झूठा दुखड़ा रोते हैं|

पता नही कितने रिश्ते साथ निभाते जीवन भर|
कितने तार - तार हो बेगाने हो जाते हैं|

पता नही कितने पाते हैं सबकुछ यहाँ पे |
और कितने सबकुछ अपना खोते हैं|

पता नहीं इनके एक चेहरे में,
कितने चहरे होते हैं|

लगता है इन लोगों के कुछ दूसरे किस्सें भी होते हैं|
पता नही ...........


रविवार, 25 जुलाई 2010

आज नही कल शाम को जाना|


बहूत दिनों के बाद मिलें हो क्योँ जाने कि जिद करते हो|

आ ही गए हो ठहर के जाना, आज नही कल शाम को जाना|

तुम्हे रोकने कि ख्वाहिश नहीं है, पर कहना है मेरे दिल का|
तेरे साथ मैँ बरबस ना करुँगा, कुछ समझो मेरी मुश्किल का|

पहले भी तुम जा सकते हो, पर करना ना झुठा बहाना|
आ ही गए हो ठहर के जाना, आज नही कल शाम को जाना|


पहले तेरे आने के..................................

पहले लू जैसा आलम था, अब बारिश सा मौसम होगा|
दिल में घटाएं घिरने लगेँगी और आँखोँ में सावन होगा|

मेरा कहा मानो बस इतना इस बारिश में भींग के जाना|
आ ही गए हो ठहर के जाना, आज नही कल शाम को जाना|


रविवार, 27 जून 2010

हम बदल गये हैं

लोगो से सुना है कि, हम बदल गये हैं|
मेरे बात बदल गये हैं|
अपने ज्जबात बदल गये हैं|

कुछ कहते हैं मेरे आवाज़ बदल गये हैं|
तो कुछ, अपने जीने के अंदाज़ बदल गये हैं|

हॉ सकता है सच भी हो,
हमें भी मालूम पड़ा है दोस्त|
अब आलम पहले सा नहीं है|
फिर भी तय नहीं कर पाया हूँ अबतक,
सब बदल गये हैं की हम बदल गये हैं|


शनिवार, 26 जून 2010

जा आगे को बढ़ता जा

जा आगे को बढ़ता जा, जा आगे को बढ़ता जा|

आगे को बढ़ता जा प्यारे पीछे मूड़ना कभी नही|
पीछे मुड़ना कायरता है, रुकना झुकना कभी नहीं||

शोक मनाते कायर जीते, जश्न मानते चलते वीर|
नतमश्तक हो कायर जीते, सर उँचा कर जीते वीर||

गर्व करो अपने उपर की बना मिला है रास्ता|
भला कहो उनलोगों को जिन्होंने बनाया रास्ता||

मंज़िल अब कोई दूर नहीं है|
जा पर्वत पर चढ़ता जा|
जा आगे को बढ़ता जा, जा आगे को बढ़ता जा|