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शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

संभलने का रियाज अगर होता सियासत में

संभलने का रियाज अगर होता सियासत में,
तो तुम तुम नही होते और हम हम नही होते|

न मजाक हम बनते, न मजा तुम उड़ा पाते|
तुम्हारा दर्द मुझे होता, मेरा हमदर्द तुम होते|

न तुम हंसते लाचारी पर, ना मैं रोता तेरे आगे, 
हंसते तो साथ हंसते और रोते तो साथ रोते|

ना बच्चे ठगे जाते, ना भिखारी होता कोई,
मिलता तो सब खाते, नही तो तुम भी भूखे होते|

कोई झूठा नही कहता, कोई घृणा नही करता,
जो तुम भी सही होते, जो हम भी सही होते|

भूखे, नंगे, कचरा बीनते बच्चे नही दिखते,
सच्चाईयों  से बचने को चेहरे पर चश्में नही होते|

ना  तुम कुछ ले जाओगे ऊपर ना हम कुछ गाड़ेंगे जमीं में....
गर समझ पाते तुम इतना तो यूँ ही अब तक दौलत नही ढोते|