संभलने का रियाज अगर होता सियासत में,
तो तुम तुम नही होते और हम हम नही होते|
न मजाक हम बनते, न मजा तुम उड़ा पाते|
तुम्हारा दर्द मुझे होता, मेरा हमदर्द तुम होते|
न तुम हंसते लाचारी पर, ना मैं रोता तेरे आगे,
हंसते तो साथ हंसते और रोते तो साथ रोते|
ना बच्चे ठगे जाते, ना भिखारी होता कोई,
मिलता तो सब खाते, नही तो तुम भी भूखे होते|
कोई झूठा नही कहता, कोई घृणा नही करता,
जो तुम भी सही होते, जो हम भी सही होते|
भूखे, नंगे, कचरा बीनते बच्चे नही दिखते,
सच्चाईयों से बचने को चेहरे पर चश्में नही होते|
ना तुम कुछ ले जाओगे ऊपर ना हम कुछ गाड़ेंगे जमीं में....
गर समझ पाते तुम इतना तो यूँ ही अब तक दौलत नही ढोते|