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मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

मिट जाए सदा ये अंधियारा, कुछ ऐसा चारो ओर करो!















मिट  जाए सदा ये अंधियारा,
कुछ ऐसा चारो ओर करो!
हर  के मन में उल्लास भरे!
जीवन में जोश उमड़ पड़े!
बच्चो की मन में उत्सव हो,
निराशाएं  ना फिर से उत्पन्न हों,
तुम ऐसा कुछ प्रकाश भरो!
मिट जाए सदा ये अंधियारा,
कुछ ऐसा चारो ओर करो!


माना  की आलू, गेंहू, तेल सब मंहगे हैं,
डीजल, बिजली मंहगी हो गई,
पटाखों  से होता प्रदूषण,
बहुत मंहगे हैं आभूषण,
मिठाइयों  के दाम चढ़े हैं,
कपड़ों  के भी दाम बढे हैं,
प्रशासन कहता है कम शोर करो|

क्या हर रोज दिवाली आती है?
क्या हर रोज मनाते हैं उत्सव?
क्या  एक दिन में ही इतना शोर?
इस उत्सव के मौसम में 
अब  और ना कोई विरोध करो|
मिट जाए सदा ये अंधियारा,
कुछ ऐसा चारो ओर करो!


यह विजय पर्व है, 
प्रकाशोत्सव है|
जन जन खुश है हर ओर धूम,
बच्चे हैं खुश हर लोग मग्न|
भूख, गरीबी, बीमारी, विपन्नता, बेकारी,
समाज की अब हर खराबी दूर करो!
मिट जाए सदा ये अंधियारा,
कुछ ऐसा चारो और करो!

ना  खरीदना कम पटाखे,
ना कम हो कहीं धमाके,
हर जगह हो धूम धड़ाके,
मिलना  गले सभी से हर किसी के घर जाके,
निराशाओं, हताशाओं, घबराहट, बेचैनी को,
अब सबके मन से दूर करो!
मिट जाए सदा ये अंधियारा,
कुछ ऐसा चारो और करो!

समय  सीमा का भी हो ख्याल,
सावधानी भी हो भरपूर,
बच्चों  को रखना नही दूर,
पूजा  अर्चना भी हो जरूर!
जुआ ताश जैसी कुरीति को 
अब समाज से दूर करो! 
मिट जाए सदा ये अंधियारा,
कुछ ऐसा चारो ओर करो!


संग अपने  टोले- मोहल्ले के,
ना उंच- नीच, ना भेदभाव|
ना धनी-निर्धन, ना आम-खास,
विपन्न- सम्पन्न सब एक साथ|
मिठाई चाहे मिले हर किसी को आधा,
पर  दीवाली हो संग लोगों के ज्यादा|
अब हर मन के अंधियारे को
दीपक के प्रकाश से दूर करो!
मिट जाए सदा ये अंधियारा,
कुछ ऐसा चारो ओर करो!



दीवाली की खुशियाँ सबके साथ बाँटें!
सावधानी पूर्वक आनंद मनाएं!
आप सभी को प्रकाश पर्व दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!





गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

हम इन्कलाब की बात करेंगे!


वे  जो मजबूर  हैं,
जिनकी आदत है,
जिनकी आस्था है,
जिनकी इबादत है,
गिरगिटों कि तरह रंग बदलना|
कभी समर्थन, कभी विरोध की बात करेंगे|

हमारे इरादे मजबूत हैं,
राष्ट्र हमारे लिए सर्वोपरि है,
हम भारत के बच्चे
सीधा... सच कहने वाले..
हम निकल कर सड़कों पर इन्कलाब कि बात करंगे|

जिन्हें जमीन दिखती हो, भारत भू|
उनके लिए आसान है,
भारत माता का गौरव गरिमा भूल जाना,
दबाब और लालचों में झुक जाना,
कायर बुजदिल हमेशा देश बांटने की हि बात करेंगे|

हम हिमालय को भाल,
हिंद महासागर को पाद समझते हैं,
हम कश्मीर को धरती का स्वर्ग,
अरुणाचल को सुप्रभात समझते हैं,
हम कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत के विशालता की बात करेंगे|

सियार जैसे होशियार लोगों के लिए आसान है,
अपनी कायरता को बुद्धिमानी का रूप दे देना,
आजादी से आजादी को खतरे में डाल देना,
संघर्ष के तरीकों को सही गलत कहने वाले..
वतन के खिलाफत की बात करेंगे|

हम सिंहों के दांत गिनने वाले,
हम मंजिल को पाने चलते हैं,
हम अशफाक - भगत के बच्चे हैं,
हम सही गलत में नही पड़ते हैं|
हम इन कायर , बुजदिल, दोहरों से आज बगावत की बात करंगे|