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शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

जब से चैन बेच कर सोता हूँ.

पहले घोड़े बेचकर सोता था|
आजकल चैन बेचकर सोता हूँ|
पहले ही शायद अच्छा था|
हर रोज घोड़े को बेचता रहता था|
जब से चैन बेच कर सोता हूँ|
हर सुबह जागते ही रोता हूँ|

हर ओर सुबह से भागम भाग,
इंसानियत की हत्या सरेशाम|
मन सोच सोच घबराता है|
हर रात बेचैन हो जाता हूँ|
जब से चैन बेच कर सोता हूँ|
हर सुबह जागते ही रोता हूँ|

अपने ही बंधु हैं सने हुए,
इस भाग दौड़ में लगे हुए|
जब अपने नजदीक नजरे दौडाता हू|
मैं खुद शर्म सार हो जाता हूँ|
जब से चैन बेच कर सोता हूँ|
हर सुबह जागते ही रोता हूँ|

अब हर बात में झूठ झूठ,
हर रस्ते पे मची है लुट लुट|
इस दुनिया में शायद मैं भी रहता हूँ,
खुद लुटा हूँ पर लोगों को जगाता रहता हूँ|
जब से चैन बेच कर सोता हूँ|
हर सुबह जागते ही रोता हूँ|

राही रास्तों से घबराता है,
लुटेरों पे विश्बास जताता है|
भ्रष्टों के पास समृद्धि है,
फिर भी ईश्वर पर झूठा विश्वास जताता हूँ|
जब से चैन बेच कर सोता हूँ|
हर सुबह जागते ही रोता हूँ|


3 टिप्‍पणियां:

  1. अब हमलोग घोड़े बेचते नहीं ...हाथी खरीदते है ....और उसे बछाने में परेशान है ॥
    सुंदर

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना चन्दन भारत जी ! बधाई !!

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  3. सुखिया सब संसार है खाये और सोये
    दुखिया दास कबीर है जागे और रोये

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