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बुधवार, 1 दिसंबर 2010

जा आगे को बढता जा|

जा आगे को बढ़ता जा, जा आगे को बढ़ता जा|

आगे को बढ़ता जा प्यारे तू पीछे मूड़ना कभी नही|
पीछे मुड़ना कायरता है, रुकना झुकना कभी नहीं|

भाग्य सहारे कायर जीते, कर्म सहारे बढते वीर|
नतमश्तक हो कायर बढ़ते, सर उँचा कर चलते वीर|

चलो निरंतर अपने पथ पर जा मंजिल को बढ़ता जा|
छूटे हुए पदचिन्ह देखकर जा आगे को बढ़ता जा|
जा आगे को बढाता जा|

गर्व करो अपने ऊपर की बना मिला है रास्ता|
नमन करो उन लोगो को जिन्होंने बनाया रास्ता|

मत हो उदास मत हो निराश विचलित मत हो संघर्ष करो|
बनो सबल तुम बनो सफल अविचल होकर उत्कर्ष करो|

स्वविवेक पर रहो अटल तुम, जा पर्वत पर चढता जा|
मंज़िल अब कोई दूर नहीं है जा आगे को बढ़ता जा|
जा आगे को बढ़ता जा|

चन्दन (पहले की स्वरचित कविता -- जा आगे को बढ़ता जा के संपादन के बाद )



2 टिप्‍पणियां:

  1. सच में कर्म की महानता ही भारतीय होने की पहचान है //..और आगे बढ़ना आदमी होने का प्रतिक

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  2. बबन पाण्डेय जी बहुत बहुत धन्यवाद|

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